*सत्संग का महत्व* नियमित सत्संग में आने वाले एक आदमी ने जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये हैं उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे। यह सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। अपनी आशंका का समाधान करने हेतु उसने सतसंग कराने वाले संत जी से पूछा - अगर कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा तो फिर सत्संग में आने का क्या फायदा है? संत जी नें मुसकुरा कर उसे देखा और एक ईंट की तरफ इशारा कर के कहा कि तुम इस ईंट को छत पर ले जा कर मेरे सर पर फेंक दो। यह सुनकर वह आदमी बोला संत जी इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा। मैं यह नहीं कर सकता। संत ने कहा - अच्छा। फिर उसे उसी ईंट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बांध कर दिया और कहा अब इसे ले जाकर मेरे सिर पर फैंकने से भी क्या मुझे चोट लगेगी? वह बोला - नहीं। संत ने कहा - बेटा इसी तरह सत्संग में आने से इन्सान को अपने कर्मो का बोझ हल्का लगने लगता है और ...