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Showing posts from July, 2020

*प्रारब्ध कर्म *

                                *प्रारब्ध*      एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।      जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।     धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे     अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।     एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।     एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।  

पिता और पुत्र

🙏🤝🙏🤝🙏🤝🙏🤝🙏 *एक बार पिता और पुत्र जलमार्ग से यात्रा कर रहे थे, और दोनों रास्ता भटक गये. वे दोनों एक जगह पहुँचे, जहाँ दो टापू आस-पास थे. पिता ने पुत्र से कहा, अब लगता है हम दोनों का अंतिम समय आ गया है. दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है. अचानक उन्हें एक उपाय सूझा, अपने पुत्र से कहा कि वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें. उन्होने दोनों टापू आपस में बाँट लिए. एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग ईश्वर की प्रार्थना करने लगे.* *पुत्र ने ईश्वर से कहा, हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें. प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये. उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया. फिर उसने प्रार्थना की, एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ. तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी. अब उसने सोचा की मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, तो क्यों न हम ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँगे? उसने ऐसा ही किया. उसने प्रार्थना की, एक नाव आ जाए जिसमें सवार होकर हम यहाँ से

*एक सच्ची कहानी*

                    *एक सच्ची कहानी* रमेश चंद्र शर्मा, जो पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे, उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है और शायद उस पाप से, जिस में वह भागीदार बना, उस से बचा सकता है। रमेश चंद्र शर्मा का पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर था जो कि अपने स्थान के कारण काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था। लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई। रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली। लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं बल्कि कई गुना कमाई होती है। शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक ज

सकारात्मक सोच का महत्व

                    सकारात्मक सोच का महत्व! *एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था।  ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था। एक कार अचानक ही पार्किंग से निकलकर रोड पर आ गई। ऑटो ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते-टकराते बची।* *कार चला रहा आदमी गुस्से में ऑटो वाले को ही भला-बुरा कहने लगा जबकि गलती उसकी थी! ऑटो चालक एक सत्संगी (सकारात्मक विचार सुनने-सुनाने वाला) था। उसने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और क्षमा माँगते हुए आगे बढ़ गया।* *ऑटो में बैठे व्यक्ति को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा... तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया। उसने तुम्हें भला-बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी।* *हमारी किस्मत अच्छी है.... नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते।* *ऑटो वाले ने बहोत मार्मिक जवाब दिया...... "साहब, बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं।......* *जिन चीजों की जीवन में कोई ज़रूरत नहीं होती उनको मेहनत करके जोड़ते रहते हैं। जैसे.... क

सिमरन की ताकत

.                            _*सिमरन की ताकत*_           _एक बार राजा अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुम हिंदू लोग दिन में कभी मंदिर जाते हो, कभी पूजा-पाठ करते हो, आखिर भगवान तुम्हें देता क्या है ?_ _बीरबल ने कहा कि महाराज मुझे कुछ दिन का समय दीजिए   बीरबल एक बूढी भिखारन के पास जाकर कहा कि मैं तुम्हें पैसे भी दूँगा और रोज खाना भी खिलाऊंगा, पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा ।  बुढ़िया ने कहा ठीक है जनाब  बीरबल ने कहा कि आज के बाद अगर कोई तुमसे पूछे कि क्या चाहिए तो कहना अकबर, अगर कोई पूछे किसने दिया तो कहना अकबर शहनशाह ने ।_ _वह भिखारिन "अकबर" को बिल्कुल नहीं जानती थी, पर वह रोज-रोज हर बात में "अकबर" का नाम लेने लगी ।  कोई पूछता क्या चाहिए तो वह कहती "अकबर",  कोई पूछता किसने दिया, तो कहती "अकबर" मेरे मालिक ने दिया है । धीरे धीरे यह सारी बातें "अकबर" के कानों तक भी पहुँच गई ।  वह खुद भी उस भिखारन के पास गया और पूछा यह सब तुझे किसने दिया है ? तो उसने जवाब दिया, मेरे शहनशाह "अकबर" ने मुझे सब कुछ दिया है, फिर पूछा और क्या चाहिए ? तो

गुरु की शिक्षा

                                      गुरु की शिक्षा       👉 एक गुरु और उनका शिष्य बहुत सुन्दर खिलौने बनाते और दिन भर बनाये खिलौनों को शाम के समय बाजार जाकर बेच आते. गुरु के बनाये खिलौनों की अपेक्षा शिष्य द्वारा बनाये गये खिलौने अधिक दाम में बिकते थे. इसके बाद भी गुरु, शिष्य को रोजाना काम में अधिक मन लगाने और अधिक सीखने की शिक्षा देते थे । वे उससे कहते की काम में और मेहनत करो, हाथ में सफाई लाओ ।   शिष्य सोचता की मैं गुरु से अच्छे खिलौने बनाता हूँ, शायद उन्हें मुझसे ईर्ष्या है. आख़िरकार उसने एक दिन गुरु से कह ही दिया, ” आप मेरे गुरु है. मैं आपका सम्मान भी करता हूँ. मेरे बनाये खिलौने आपसे अधिक कीमत में बिकते है. गुरु जी ने बिना किसी उत्तेजना के शिष्य की बात का उत्तर दिया, ” बेटा, आज से बीस साल पहले मुझसे भी ऐसी ही भूल हुई थी, तब मेरे गुरु के खिलौने भी मुझसे कम दाम में बिकते थे. वे भी मुझसे अपना काम और कला को लगातार सुधारने के लिए कहा करते थे. मैं उन पर बिगड़ गया था और फिर अपनी कला का विकास नहीं कर पाया. अब मैं नहीं चाहता की तुम्हारे साथ भी वही हो । यह सुनते ही शिष्य को अपनी भू

पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता

                          *पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता* _*भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है।दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,अगर सबसे कम बोल-चाल है,तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में।*_ _एक समय तक दोनों अंजान होते हैं,एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से फिर धीरे से अहसास होता है हमेशा के लिए बिछड़ने का ।जब लड़का,अपनी जवानी पार कर अगले पड़ाव पर चढ़ता है तो यहाँ इशारों से बाते होने लगती हैं  या फिर इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाने वाली *माँ* के माध्यम से ।_ _पिता अक्सर उसकी माँ से कहा करते हैं , *"उससे कह देना"* और पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहा करता है *"पापा से पूछ लो ना"*_ _*इसी दोनों धुरियों के बीच घूमती रहती है माँ*।_ _जब एक कहीं होता है तो दूसरा वहाँ नहीं होने की कोशिश करता है,शायद पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं ।जबकि वो डर नज़दीकी का नहीं है, डर है उसके बाद बिछड़ने का ।भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को कहा हो कि बेटा मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ ।पिता की अनंत गालियों का उत्तराधिकारी भी वही होता है,क्योंकि पिता हर पल ज़िन्दगी में अपने बेटे को