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Showing posts from 2022

*तुलसी कौन थी?*

                              *तुलसी कौन थी?* ```तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था. वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा``` - स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर``` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये। सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद क

कौवा और हंस प्रवृति।।।।।

 *प्राचीन समय की बात है : एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था..दूसरा अमीर*     *दोनों पड़ोसी थे. गरीब ब्राम्हण की पत्नी उसे रोज़ ताने देती और झगड़ती* *एकादशी के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र झगड़ों से तंग आकर जंगल की ओर चल पड़ता है, ये सोच कर कि जंगल में शेर या कोई जंगली जानवर उसे मार कर खा जायेगा, उसका पेट भर जायेगा और मरने से रोज की झिक- झिक से मुक्त हो जायेगा* *जंगल में पहुंचते ही उसे एक गुफ़ा नज़र आती है; वो उस गुफ़ा की तरफ़ जाता है..गुफ़ा में एक शेर सोया हुआ था और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा था* *हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़कर सोचता है..ये ब्राह्मण आयेगा, शेर जागेगा और इसे मारकर खा जायेगा..एकादशी के दिन मुझे पाप लगेगा..इसे बचायें कैसे?* *उसे उपाय सूझता  है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते हुए कहता है..ओ जंगल के राजा! उठो,जागो आज आपके भाग खुले हैं, एकादशी के दिन खुद विप्र- देव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हें दक्षिणा दें; रवाना करें; आपका मोक्ष हो जायेगा..ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु-योनी

दुनिया कैसे लोगों पर टिकी हुई है

                    *दुनिया कैसे लोगों पर टिकी हुई है*                                               .  एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।  अचानक से उसे लगा कि, उसकी बहन पीछे रह गयी है।  वह रुका, पीछे मुड़कर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है। लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, "कुछ चाहिये तुम्हें?" लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है। बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी । दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ .... अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?" दुकानदार एक शांत और गहरा व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे थे, उन्होने बड़े प्यार और अपनत्व से बच्चे से पूछा,  "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो ??" बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोड़ी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर ब

मन को वश में करने का तरीका।

                              मन को वश में करने का तरीका।        मन को वश करके प्रभु चरणों में लगाना बड़ा ही कठिन है। शुरुआत में तो यह इसके लिये तैयार  ही नहीं होता है । लेकिन इसे मनाएं कैसे?        एक शिष्य थे । किन्तु उनका मन किसी भी भगवान की साधना में नही लगता था। साधना करने की इच्छा भी मन मे थी ।  वे गुरु के पास गये और कहा कि गुरुदेव मन लगता नहीं और साधना करने का मन होता है । कोई ऐसी साधना बताएं जो मन भी लगे और साधना भी हो जाये ।  गुरु ने कहा तुम कल आना । दुसरे दिन वह गुरु के पास पहुँचा तो गुरु ने कहा । सामने रास्ते में कुत्ते के छोटे बच्चे हैं उनमे से दो बच्चे उठा ले आओ और उनकी हफ्ताभर  देखभाल करो ।  गुरु के इस अजीब आदेश को सुनकर वह भक्त चकरा गया लेकिन क्या करे, गुरु का आदेश जो था। वह 2 पिल्लों को पकड़ कर लाया लेकिन जैसे ही छोड़ा वे भाग गये। वह फिर से पकड़ लाया लेकिन वे फिर भागे ।  अब उसने उन्हें पकड़ लिया और दूध रोटी खिलायी । अब वे पिल्ले उसके पास रमने लगे। सप्ताहभर उन  की ऐसी सेवा यत्न पूर्वक की कि अब वे उसका साथ छोड़ नही रहे थे । वह जहाँ भी जाता पिल्ले उसके पीछे-पीछे भागते। यह

सत्संग का महत्व

                               *सत्संग का महत्व* नियमित सत्संग में आने वाले एक आदमी ने जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये हैं उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे।  यह सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। अपनी आशंका का समाधान करने हेतु उसने सतसंग कराने वाले संत जी से पूछा - अगर कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा तो फिर सत्संग में आने का क्या फायदा है?        संत जी नें मुसकुरा कर उसे देखा और एक ईंट की तरफ इशारा कर के कहा कि तुम इस ईंट को छत पर ले जा कर मेरे सर पर फेंक दो।       यह सुनकर वह आदमी बोला संत जी इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा।  मैं यह नहीं कर सकता।       संत ने कहा - अच्छा। फिर उसे उसी ईंट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बांध कर दिया और कहा अब इसे ले जाकर मेरे सिर पर फैंकने से भी क्या मुझे चोट लगेगी?     वह बोला - नहीं। संत ने कहा - बेटा इसी तरह सत्संग में आने से इन्सान को अपने कर्मो का बोझ हल्का लगने लगता है और वह हर दुःख तकलीफ को परमात्मा की दया समझ कर बड़े प्यार से सह लेता है।  सत्संग में आने से इन्सान का मन निर्मल होता है और वह मोह माया के चक्कर में किए जा

अंतिम महल(एक कहानी)

                                 *" अंतिम महल "*                एक राजा बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था और उसे महल बनाने की बड़ी महत्त्वाकांक्षा रहती थी उसने अनेक महलों का निर्माण करवाया!              रानी उनकी इस इच्छा से बड़ी व्यथित रहती थी की पता नही क्या करेंगे इतने महल बनवाकर!          एक दिन राजा नदी के उस पार एक महात्मा जी के आश्रम के वहाँ से गुजर रहे थे तो वहाँ एक संत की समाधी थी और सैनिकों से राजा को सूचना मिली की संत के पास कोई अनमोल खजाना था और उसकी सूचना उन्होंने किसी को न दी पर अंतिम समय मे उसकी जानकारी एक पत्थर पर खुदवाकर अपने साथ ज़मीन मे गढ़वा दिया और कहा की जिसे भी वो खजाना चाहिये उसे अपने स्वयं के हाथों से अकेले ही इस समाधी से चोरासी हाथ नीचे सूचना पड़ी है निकाल ले और अनमोल सूचना प्राप्त कर लेंवे और ध्यान रखे उसे बिना कुछ खाये पिये खोदना है और बिना किसी की सहायता के खोदना है अन्यथा सारी मेहनत व्यर्थ चली जायेगी !            राजा अगले दिन अकेले ही आया और अपने हाथों से खोदने लगा और बड़ी मेहनत के बाद उसे वो शिलालेख मिला और उन शब्दों को जब राजा ने पढ़ा तो उसके होश उड़ गये

हजरत_जनून_जी

                        #हजरत_जनून_जी# एक बार जिज्ञासु हजरत जनून के पास आया और आश्रम में सेवा करने लगा I उसको सेवा करते 6 वर्ष बीत गये परनतु हजरत जनुन ने उस व्यक्ति से उसका नाम भी न पुछा I एक दिन हजरत जनुन ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और उसका नाम और उसके आने कारण पुछा I उसने अर्ज किया की कि हुजुर मै आपके आश्रम मे पिछले 6 वर्ष से रह रहा हु I मै हुजुर के पास नाम प्राप्ती के लिए हजिर हुआ हु I आप ने कहा कि आप ने कभी कहा नही वह बोला आप ने पुछा नही और मैने कहा नही आप मेरे उपर अब कृपा करे और अपनी शरण में ले, हजरत ने उसको उसको एक लोहे कि संदूकची दी कि इसको ले जाओ और नील नदी के दूसरी पार मेरे मुरशिद रहते है, उनको दे आओ I जब आप वापस आओगे तो आपको नाम कि बख्शीश करेंगे I उन्होंने यह भी कहा कि संदूकची में ताला नहीं लगा परन्तु आप इसको खोलना नहीं और किसी भी हालत इसको उनकी खिदमत में पंहुचा दे I वह ले कर चल दिया I रास्ते में मन ने जोर मारा कि इसको खोल कर देखो फिर ख्याल भी आया कि हजरत ने मना किया था I यह लड़ाई बराबर चलती रही अंत में वह नील नदी के किंदरे पंहुचा I किश्ती का इन्तजार करने लगा फिर मन ने जो

संत कर्म-बंधन कैसे काटते हैं

 💙💙💙वाहेगुरुजी 💙💙💙      संत कर्म-बंधन कैसे काटते हैं✍️ एक बार दशम पातशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था। कर्म-फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है। वचनों के पश्चात मौज उठी कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे। एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि प्रभु मैं बहुत गरीब हूँ। मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ उसकी भावना को देखकर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि तुझे लखपति बनाया और ऐसे ही दूसरे गुरुमुखों ने भी मांगा। उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे। उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा रायबुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो, उसने हाथ जोड़कर खड़े होकर प्रार्थना की कि प्रभु मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना न

खुश कैसे रहें

                         कैसे   रहें     खुश _एक बार एक अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे थे अचानक ही उन्होंने बच्चों की एक छोटी सी परीक्षा लेने की सोची । अध्यापक ने सब बच्चों से कहा कि सब लोग अपने अपने नाम की एक पर्ची बनायें । सभी बच्चों ने तेजी से अपने अपने नाम की पर्चियाँ बना लीं और टीचर ने वो सारी पर्चियाँ लेकर एक बड़े से डब्बे में डाल दीं अब सब बच्चों से कहा कि वो अपने अपने नाम की पर्चियां ढूंढे । फिर क्या था , सारे बच्चे डब्बे पे झपट पड़े और अपनी अपनी पर्चियां ढूंढने लगे और तेजी से ढूंढने के चक्कर में कुछ पर्चियां फट भी गयीं पर किसी को भी इतनी सारी पर्चियों में अपने नाम की पर्ची नहीं मिल पा रही थी_ _टीचर ने कहा – क्या हुआ किसी को अपने नाम की पर्ची मिली , सारे बच्चे मुँह लटकाये खड़े थे । टीचर हल्का सा मुस्कुराये और बोले – कोई बात नहीं , एक काम करो सारे लोग कोई भी एक पर्ची उठा लो और वो जिसके नाम की हो उसे दे दो । बस फिर क्या था , सारे बच्चों ने एक एक पर्ची उठा ली और जिसके नाम की थी आपस में एक दूसरे को दे दी 2 मिनट के अंदर सारे बच्चों के पास अपने अपने नाम की सही सही पर्चियां थीं अध्यापक ने बच्

सच्ची इवादत।

                           *सच्ची इबादत* *एक समय की बात है*, हजरत मुउईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बाहर कुछ अन्धें भिखारी अपने अन्धेंपन की दुहाई देकर भीख माँग रहे थे !   तभी वहाँ से औरंगजेब का लश्कर गुजर रहा था ।   उसने अन्धें भिखारीयों से कहाँ क्यों रो रहे हो तो इस पर भिखारियों ने कहाँ *हुजूर हम अन्धें है ! अल्लाह ने हम गरीबों की आँखों की रोशनी छीन ली है !*  आप हम पर दया करके कुछ दे दें !   *इस पर औरंगजेब ने कहा कि तुम दरगाह पर अपनी आँखों के ठीक होने की दुआ माँगों ! इस पर भिखारियों ने कहा हुजूर हर रोज माँगते है ! मगर मंजूर नहीं होती है !  औरंगजेब ने कहा कि मैं अभी थोड़ी देर बाद वापस आ रहा हुँ और तब तक तुम दरगाह पर अपनी आँखों की रोशनी के लिए दुआ करों ।  अगर तुम्हारी आँखों की रोशनी वापिस नहीं आई तो मैं तुम सब के सिर कलम कर दुंगा, इतना कह कर औरंगजेब वहाँ से चला गया !*          अन्धें भिखारी और जोर जोर से रोने लगे और कहने लगें, हजरत एक तो पहले ही हमारी आँखों में रोशनी नहीं थी !  उपर से औरंगजेब ने हम पर यह फत्वा जारी कर दिया है !  *यह कैसा ईन्साफ है तेरा,,,,,,,,,,क्या आपको हमारी यह दशा देखकर

भँवरा और गोवरी की दोस्ती।।

 *एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी ! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ!* *भंवरा भोजन खाने पहुँचा! बाद में भंवरा सोच में पड़ गया- कि मैंने बुरे का संग किया इसलिये मुझे गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रन दिया कि तुम कल मेरे यहाँ आओ!* *अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा! भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया!*  *कीड़े ने परागरस पिया! मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुये! चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला! संध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए! कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है!*    *संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए*    *लोहा लगा जहाज में ,  पानी में उतराय!* *कोई भी नही जानता कि हम इस जीवन के

जन्मों का कर्म

 .                  🙏🌹 "जन्मों का कर्ज",🌹🙏           एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"           जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।" और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।" और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है ! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।" ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।          एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है। हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक से