*सच्ची इबादत*
*एक समय की बात है*, हजरत मुउईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बाहर कुछ अन्धें भिखारी अपने अन्धेंपन की दुहाई देकर भीख माँग रहे थे ! तभी वहाँ से औरंगजेब का लश्कर गुजर रहा था । उसने अन्धें भिखारीयों से कहाँ क्यों रो रहे हो तो इस पर भिखारियों ने कहाँ *हुजूर हम अन्धें है ! अल्लाह ने हम गरीबों की आँखों की रोशनी छीन ली है !* आप हम पर दया करके कुछ दे दें ! *इस पर औरंगजेब ने कहा कि तुम दरगाह पर अपनी आँखों के ठीक होने की दुआ माँगों ! इस पर भिखारियों ने कहा हुजूर हर रोज माँगते है ! मगर मंजूर नहीं होती है ! औरंगजेब ने कहा कि मैं अभी थोड़ी देर बाद वापस आ रहा हुँ और तब तक तुम दरगाह पर अपनी आँखों की रोशनी के लिए दुआ करों । अगर तुम्हारी आँखों की रोशनी वापिस नहीं आई तो मैं तुम सब के सिर कलम कर दुंगा, इतना कह कर औरंगजेब वहाँ से चला गया !*
अन्धें भिखारी और जोर जोर से रोने लगे और कहने लगें, हजरत एक तो पहले ही हमारी आँखों में रोशनी नहीं थी ! उपर से औरंगजेब ने हम पर यह फत्वा जारी कर दिया है ! *यह कैसा ईन्साफ है तेरा,,,,,,,,,,क्या आपको हमारी यह दशा देखकर रहम् नहीं आता । '''ए अल्लाह मदद कर"' ''''रहम कर''' 'या "गरीब नवाज मदद कर''',' इतने में किसी गैबी शक्ति ने उन सब भिखारियों की आँखों को रोशनी दे दी !! यह करामात देख कर भिखारियों की खुशी का ठिकाना न रहा !! थोड़ी देर बाद जब औरंगजेब वापिस आया तो सब भिखारियों की आँखों की रोशनी देखकर हैरान हो गया और सब भिखारियों को सजाए मौत से बरी कर दिया !*
इस साखी में औरंगजेब की क्रुरता भी है !! हजरत मुउईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की करामात भी है ! *मगर एक छिपी हुई शिक्षा भी है ! वो यह है कि अँधें भिखारी हर रोज दरगाह पर अपनी आँखों के लिए दुआ पड़ते थे !! मगर उनकी दुआ मे एकाग्रता नहीँ थी, कशिश नही थी ! इसलिए मंजुर नहीं होती थी ! मगर जब उनको अपनी मौत का डर हुआ और लगा कि औरंगजेब रूपी काल उनके सिर पर खड़ा है तो उन्होंने बड़ी एकाग्रता के साथ दुआ पड़ी और मन्जूर भी हो गई! !*
हम सब सत्संगियों के सिमरन में भी यही कमी है ! *हम अपनी मौत को आगे नहीं रखते है ! यह नहीं सोचते है कि यह हमारा आखिरी दिन है, यह हमारा आखिरी श्वास है, एकाग्रचित नहीं हो पाते है और कुछ दुनियां के आशिक होते है, कहते है सिमरन नहीं होता है यह बहुत कठिन है ! गुरू साहिब कहते है मरने के बाद तुझ पर कैसी मुसीबत आने वाली है, तुम्हें इसका अंदाजा ही नहीं है !!*
*सो सिमरन करो ,,,, सिमरन करो ,,,,,, सिमरन करो ,,,,,*
*मन में दुनियां के ख्याल लेकर की गयी इबादत सच्ची इबादत नहीं है ! परमात्मा की इबादत तो ऐसी होनी चाहिए कि दुनिया के सब ख्याल, नीचे बैठ जाए और सिर्फ सिमरन, सिमरन, भजन सिमरन ही होना चाहिए ।*
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