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Showing posts from July, 2022

अंतिम महल(एक कहानी)

                                 *" अंतिम महल "*                एक राजा बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था और उसे महल बनाने की बड़ी महत्त्वाकांक्षा रहती थी उसने अनेक महलों का निर्माण करवाया!              रानी उनकी इस इच्छा से बड़ी व्यथित रहती थी की पता नही क्या करेंगे इतने महल बनवाकर!          एक दिन राजा नदी के उस पार एक महात्मा जी के आश्रम के वहाँ से गुजर रहे थे तो वहाँ एक संत की समाधी थी और सैनिकों से राजा को सूचना मिली की संत के पास कोई अनमोल खजाना था और उसकी सूचना उन्होंने किसी को न दी पर अंतिम समय मे उसकी जानकारी एक पत्थर पर खुदवाकर अपने साथ ज़मीन मे गढ़वा दिया और कहा की जिसे भी वो खजाना चाहिये उसे अपने स्वयं के हाथों से अकेले ही इस समाधी से चोरासी हाथ नीचे सूचना पड़ी है निकाल ले और अनमोल सूचना प्राप्त कर लेंवे और ध्यान रखे उसे बिना कुछ खाये पिये खोदना है और बिना किसी की सहायता के खोदना है अन्यथा सारी मेहनत व्यर्थ चली जायेगी !            राजा अगले दिन अकेले ही आया और अपने हाथों से खोदने लगा और बड़ी मेहनत के बाद उसे वो शिलालेख मिला और उन शब्दों को जब राजा ने पढ़ा तो उसके होश उड़ गये

हजरत_जनून_जी

                        #हजरत_जनून_जी# एक बार जिज्ञासु हजरत जनून के पास आया और आश्रम में सेवा करने लगा I उसको सेवा करते 6 वर्ष बीत गये परनतु हजरत जनुन ने उस व्यक्ति से उसका नाम भी न पुछा I एक दिन हजरत जनुन ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और उसका नाम और उसके आने कारण पुछा I उसने अर्ज किया की कि हुजुर मै आपके आश्रम मे पिछले 6 वर्ष से रह रहा हु I मै हुजुर के पास नाम प्राप्ती के लिए हजिर हुआ हु I आप ने कहा कि आप ने कभी कहा नही वह बोला आप ने पुछा नही और मैने कहा नही आप मेरे उपर अब कृपा करे और अपनी शरण में ले, हजरत ने उसको उसको एक लोहे कि संदूकची दी कि इसको ले जाओ और नील नदी के दूसरी पार मेरे मुरशिद रहते है, उनको दे आओ I जब आप वापस आओगे तो आपको नाम कि बख्शीश करेंगे I उन्होंने यह भी कहा कि संदूकची में ताला नहीं लगा परन्तु आप इसको खोलना नहीं और किसी भी हालत इसको उनकी खिदमत में पंहुचा दे I वह ले कर चल दिया I रास्ते में मन ने जोर मारा कि इसको खोल कर देखो फिर ख्याल भी आया कि हजरत ने मना किया था I यह लड़ाई बराबर चलती रही अंत में वह नील नदी के किंदरे पंहुचा I किश्ती का इन्तजार करने लगा फिर मन ने जो

संत कर्म-बंधन कैसे काटते हैं

 💙💙💙वाहेगुरुजी 💙💙💙      संत कर्म-बंधन कैसे काटते हैं✍️ एक बार दशम पातशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था। कर्म-फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है। वचनों के पश्चात मौज उठी कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे। एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि प्रभु मैं बहुत गरीब हूँ। मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ उसकी भावना को देखकर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि तुझे लखपति बनाया और ऐसे ही दूसरे गुरुमुखों ने भी मांगा। उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे। उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा रायबुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो, उसने हाथ जोड़कर खड़े होकर प्रार्थना की कि प्रभु मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना न