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Showing posts from 2020

हार नहीं माननी चाहिए

                       *🔥हार नहीं माननी चाहिए 🔥* *एक समय की बात है, प्रतापगढ़ के राजा की कोई संतान नहीं थी. लेकिन राज्य को आगे बढ़ाने के लिए एक उत्तराधिकारी की जरूरत थी. इसलिए राजा ने एक फैसला किया कि वह अपने ही राज्य से किसी एक बच्चे को चुनेगा जो उसका उत्तराधिकारी बनेगा….* इस इरादे से राजा ने अपने राज्य के सभी बच्चों को बुलाकर यह घोषणा की कि वह इन बच्चों में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी चुनेगा… *उसके बाद राजा ने उन बच्चो को एक एक थैली बंटवा दी और कहा….. कि आप सब  लोगो को जो थैली दी गई है उसमे अलग-अलग फूलों का बीज हैं.. हर बच्चे को सिर्फ एक एक बीज ही दिया गया है… आपको इसे अपने घर ले जाकर एक गमले में लगाना है… और 6 महीने बाद हम फिर इस आप सब के इस गमले के साथ यहीं इकठ्ठा होंगे और उस समय मैं फैसला करूँगा की कौन इस राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा…* *उन लडकों में एक ध्रुव नाम का।का था,* बाकी बच्चो की तरह वो भी बीज लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर वापस आ गया… उसी दिन घर जाकर उसने एक गमले में उस बीज को लगा दिया और उसकी अच्छे से देखभाल की… दिन बीतने लगे, *लेकिन कई हफ्ते बाद भी गमले में पौधे का कोई नामोनि

परमात्मा से सम्बन्ध

                           *------ परमात्मा से सम्बन्ध ------* एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए। उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा। कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई, तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए। लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था? बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है? पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए। फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया, कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं। ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा। फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना। दूसरे दिन राजा की सवारी निकली। सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी। पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे। जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा, तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे? आप तो हमारे गुरु हैं। आइए! इस ब

मांस का मूल्य

                              ।।।।।।मांस का मूल्य।।।।।। मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :  देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए  सबसे सस्ती वस्तु क्या है ? मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता ! तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा : राजन,  सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,  इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।  तब सम्राट ने उनसे पूछा :  आपका इस बारे में क्या मत है ?  चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा ! रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया । प्रधानमंत्री ने कहा :  शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृ

कृष्ण की गोपियाँ

                              ।।।  कृष्ण की गोपियाँ ।।। प्रभु श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ बहुत-सी लीलायें की हैं । श्री कृष्ण गोपियों की मटकी फोड़ते और माखन चुराते और गोपियाँ श्री कृष्ण का उलाहना लेकर यशोदा मैया के पास जातीं । ऐसा बहुत बार हुआ । एक बार की बात है कि यशोदा मैया प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आ गयीं और छड़ी लेकर श्री कृष्ण की ओर दौड़ी । जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वह अपना बचाव करने के लिए भागने लगे । भागते-भागते श्री कृष्ण एक कुम्भार के पास पहुँचे । कुम्भार तो अपने मिट्टी के घड़े बनाने में व्यस्त था । लेकिन जैसे ही कुम्भार ने श्री कृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ । कुम्भार जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं । तब प्रभु ने कुम्भार से कहा कि 'कुम्भार जी, आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित है । मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही है । भैया, मुझे कहीं छुपा लो ।' तब कुम्भार ने श्री कृष्ण को एक बडे से मटके के नीचे छिपा दिया । कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहाँ आ गयीं और कुम्भार से पूछने लगी - 'क्यूँ रे, कुम्भार ! तूने मेरे कन्हैया को कहीं

प्रेम के बोल

                             *!!  प्रेम के बोल  !!* ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  एक गाँव में एक मजदुर रहा करता था जिसका नाम हरिराम था | उसके परिवार में कोई नहीं था | दिन भर अकेला मेहनत में लगा रहता था | दिल का बहुत ही दयालु और कर्मो का भी बहुत अच्छा था | मजदुर था इसलिए उसे उसका भोजन उसे मजदूरी के बाद ही मिलता था | आगे पीछे कोई ना था इसलिये वो इस आजीविका से संतुष्ट था | एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया | उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा | हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता | कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया | उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था | गाँव के सभी लोग हरिराम के बैल की ही बाते किया करते थे | किसानों के गाँव में बैल की भरमार थी पर हरिराम का बैल उन सबसे अलग था | दूर-दूर से लोग उसे देखने आते थे |हर कोई हरिराम के बैल के बारे में बाते कर र

ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति

*.                      🔆 ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति !!🔆* 🔷 काम की तलाश में इधर-उधर धक्के खाने के बाद निराश होकर जब वह घर वापस लौटने लगा तो पीछे से आवाज आयी, ऐ भाई ! यहाँ कोई मजदूर मिलेगा क्या? 🔶 उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि एक झुकी हुई कमर वाला बूढ़ा तीन गठरियाँ उठाए हुए खड़ा है। उसने कहा - हाँ !!बोलो क्या काम है ? मैं ही मजदूरी कर लूँगा। 🔷 मुझे रामगढ़ जाना है । दो गठरियाँ में उठा लूँगा, पर मेरी तीसरी गठरी भारी है, इस गठरी को तुम रामगढ़ पहुँचा दो, मैं तुम्हें दो रुपये दूँगा। बोलो काम मंजूर है। 🔶 ठीक है। चलो !! आप बुजुर्ग हैं। आपकी इतनी मदद करना तो यूँ भी मैं अपना फर्ज समझता हूँ। इतना कहते हुए गठरी उठाकर अपने सिर पर रख ली। किन्तु गठरी रखते ही उसे इसके भारीपन का अहसास हुआ। उसने बूढ़े से कहा- ये गठरी तो काफी भारी लगती है। 🔷 हाँ..... इसमें एक-एक रुपये के सिक्के हैं। बूढ़े ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा। 🔶 उसने सुना तो सोचा, होंगे मुझे क्या? मुझे तो अपनी मजदूरी से मतलब है। ये सिक्के भला कितने दिन चलेंगे? तभी उसने देखा कि बूढ़ा उस पर नजर रखे हुए है। उसने सोचा कि ये बूढ़ा जरूर ये सो

पाप -कर्म का प्रभाव

                    ( पाप -कर्म का प्रभाव ) प्राचीन काल की बात है राजा जनक ने ज्यों ही योग बल से शरीर का त्याग किया, त्यों ही एक सुन्दर सजा हुआ विमान आ गया और राजा दिव्य-देहधारी सेवको के साथ उस पर चढकर चले।  विमान यमराज की "संमनीपुरी" (नर्कों की नगरी) के निकटवर्ती भाग से जा रहा था।  ज्यों को विमान वहाँ से आगे बढ़ने लगा, त्यों ही बड़े ऊँचे स्वंर से राजा को हजारों मुखों से निकली हुई करुण ध्वनि सुनायी पड़ी : "हे पुण्यात्मा राजन् ! आप यहां से जाइये नहीं ! आपके शरीर को छूकर आने वाली वायु का स्पर्श पाकर हम यातनाओं से पीड़ित नरक के प्राणियों को बड़ा ही सुख मिल रहा है।" धार्मिक और दयालु राजा ने दुखी जीवों की करुण पुकार सुनकर दया के वश निश्चय किया : "जब मेरे यहाँ रहने से इन्हें सुख मिलता है तो  मैं यहीं रहूंगा। मेरे लिये यही सुन्दर स्वर्ग है।"  राजा वहीं ठहर गये।  तब यमराज ने उनसे कहा : "यह स्थान तो इष्ट, हत्यारे पापियों के लिये है। हिंसक, दूसरो पर कलंक लगाने वाले, लुटेरे, पतिपरायणा पती का त्याग करने वाले..  मित्रों को धोखा देनेवाले, दम्भी, द्वेष और उपहास करके

पिता का आशीर्वाद

                          बाप का आशीर्वाद और उस                          आशीर्वाद की परीक्षा:- गुजरात के खंभात के एक व्यापारी की यह  सत्य घटना है। जब मृत्यु का समय सन्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि बेटा - मेरे पास धन संपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं ,पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी।  बेटे ने सिर झुका कर पिताजी के पैर छुए।  पिता ने सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया, और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए। अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था।उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। धीरेधीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा।  अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है क्योंकि उन्होंने जीवन में दुख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी, इसलिए उनकी वाणी में बल था, और उनके आशीर्वाद फल

*प्रारब्ध कर्म *

                                *प्रारब्ध*      एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।      जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।     धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे     अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।     एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।     एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।  

पिता और पुत्र

🙏🤝🙏🤝🙏🤝🙏🤝🙏 *एक बार पिता और पुत्र जलमार्ग से यात्रा कर रहे थे, और दोनों रास्ता भटक गये. वे दोनों एक जगह पहुँचे, जहाँ दो टापू आस-पास थे. पिता ने पुत्र से कहा, अब लगता है हम दोनों का अंतिम समय आ गया है. दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है. अचानक उन्हें एक उपाय सूझा, अपने पुत्र से कहा कि वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें. उन्होने दोनों टापू आपस में बाँट लिए. एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग ईश्वर की प्रार्थना करने लगे.* *पुत्र ने ईश्वर से कहा, हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें. प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये. उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया. फिर उसने प्रार्थना की, एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ. तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी. अब उसने सोचा की मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, तो क्यों न हम ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँगे? उसने ऐसा ही किया. उसने प्रार्थना की, एक नाव आ जाए जिसमें सवार होकर हम यहाँ से

*एक सच्ची कहानी*

                    *एक सच्ची कहानी* रमेश चंद्र शर्मा, जो पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे, उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है और शायद उस पाप से, जिस में वह भागीदार बना, उस से बचा सकता है। रमेश चंद्र शर्मा का पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर था जो कि अपने स्थान के कारण काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था। लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई। रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली। लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं बल्कि कई गुना कमाई होती है। शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक ज

सकारात्मक सोच का महत्व

                    सकारात्मक सोच का महत्व! *एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था।  ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था। एक कार अचानक ही पार्किंग से निकलकर रोड पर आ गई। ऑटो ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते-टकराते बची।* *कार चला रहा आदमी गुस्से में ऑटो वाले को ही भला-बुरा कहने लगा जबकि गलती उसकी थी! ऑटो चालक एक सत्संगी (सकारात्मक विचार सुनने-सुनाने वाला) था। उसने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और क्षमा माँगते हुए आगे बढ़ गया।* *ऑटो में बैठे व्यक्ति को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा... तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया। उसने तुम्हें भला-बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी।* *हमारी किस्मत अच्छी है.... नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते।* *ऑटो वाले ने बहोत मार्मिक जवाब दिया...... "साहब, बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं।......* *जिन चीजों की जीवन में कोई ज़रूरत नहीं होती उनको मेहनत करके जोड़ते रहते हैं। जैसे.... क

सिमरन की ताकत

.                            _*सिमरन की ताकत*_           _एक बार राजा अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुम हिंदू लोग दिन में कभी मंदिर जाते हो, कभी पूजा-पाठ करते हो, आखिर भगवान तुम्हें देता क्या है ?_ _बीरबल ने कहा कि महाराज मुझे कुछ दिन का समय दीजिए   बीरबल एक बूढी भिखारन के पास जाकर कहा कि मैं तुम्हें पैसे भी दूँगा और रोज खाना भी खिलाऊंगा, पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा ।  बुढ़िया ने कहा ठीक है जनाब  बीरबल ने कहा कि आज के बाद अगर कोई तुमसे पूछे कि क्या चाहिए तो कहना अकबर, अगर कोई पूछे किसने दिया तो कहना अकबर शहनशाह ने ।_ _वह भिखारिन "अकबर" को बिल्कुल नहीं जानती थी, पर वह रोज-रोज हर बात में "अकबर" का नाम लेने लगी ।  कोई पूछता क्या चाहिए तो वह कहती "अकबर",  कोई पूछता किसने दिया, तो कहती "अकबर" मेरे मालिक ने दिया है । धीरे धीरे यह सारी बातें "अकबर" के कानों तक भी पहुँच गई ।  वह खुद भी उस भिखारन के पास गया और पूछा यह सब तुझे किसने दिया है ? तो उसने जवाब दिया, मेरे शहनशाह "अकबर" ने मुझे सब कुछ दिया है, फिर पूछा और क्या चाहिए ? तो

गुरु की शिक्षा

                                      गुरु की शिक्षा       👉 एक गुरु और उनका शिष्य बहुत सुन्दर खिलौने बनाते और दिन भर बनाये खिलौनों को शाम के समय बाजार जाकर बेच आते. गुरु के बनाये खिलौनों की अपेक्षा शिष्य द्वारा बनाये गये खिलौने अधिक दाम में बिकते थे. इसके बाद भी गुरु, शिष्य को रोजाना काम में अधिक मन लगाने और अधिक सीखने की शिक्षा देते थे । वे उससे कहते की काम में और मेहनत करो, हाथ में सफाई लाओ ।   शिष्य सोचता की मैं गुरु से अच्छे खिलौने बनाता हूँ, शायद उन्हें मुझसे ईर्ष्या है. आख़िरकार उसने एक दिन गुरु से कह ही दिया, ” आप मेरे गुरु है. मैं आपका सम्मान भी करता हूँ. मेरे बनाये खिलौने आपसे अधिक कीमत में बिकते है. गुरु जी ने बिना किसी उत्तेजना के शिष्य की बात का उत्तर दिया, ” बेटा, आज से बीस साल पहले मुझसे भी ऐसी ही भूल हुई थी, तब मेरे गुरु के खिलौने भी मुझसे कम दाम में बिकते थे. वे भी मुझसे अपना काम और कला को लगातार सुधारने के लिए कहा करते थे. मैं उन पर बिगड़ गया था और फिर अपनी कला का विकास नहीं कर पाया. अब मैं नहीं चाहता की तुम्हारे साथ भी वही हो । यह सुनते ही शिष्य को अपनी भू

पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता

                          *पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता* _*भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है।दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में,अगर सबसे कम बोल-चाल है,तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में।*_ _एक समय तक दोनों अंजान होते हैं,एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से फिर धीरे से अहसास होता है हमेशा के लिए बिछड़ने का ।जब लड़का,अपनी जवानी पार कर अगले पड़ाव पर चढ़ता है तो यहाँ इशारों से बाते होने लगती हैं  या फिर इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाने वाली *माँ* के माध्यम से ।_ _पिता अक्सर उसकी माँ से कहा करते हैं , *"उससे कह देना"* और पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहा करता है *"पापा से पूछ लो ना"*_ _*इसी दोनों धुरियों के बीच घूमती रहती है माँ*।_ _जब एक कहीं होता है तो दूसरा वहाँ नहीं होने की कोशिश करता है,शायद पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं ।जबकि वो डर नज़दीकी का नहीं है, डर है उसके बाद बिछड़ने का ।भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को कहा हो कि बेटा मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ ।पिता की अनंत गालियों का उत्तराधिकारी भी वही होता है,क्योंकि पिता हर पल ज़िन्दगी में अपने बेटे को

आनंदित रहने की कला

।। आनंदित रहने की कला ।। एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म (ईश्वर की खोज) में समय लगाए । राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है । राजा का बच्चा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है । जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा । गुरु ने कहा, "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है ?" राजा ने कहा, "मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ? लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ ।" गुरु ने पूछा, "अब तुम क्या करोगे ?" राजा बोला, "मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए ।" गुरु ने कहा, "मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।" राजा बोला, "

भक्त

                                  *"हरिया भक्त"*           हरिया नाम का एक आदमी मिठाई की दुकान चलाता था। वह अपने हाथ से ही सारी मिठाइयां दही और पनीर बनाता था। जब भी वह कोई काम करता तो यही बोलता 'हरि इच्छा'। जब भी कोई उससे ग्राहक सौदा लेने आता तो वह सौदा देते और तोलते समय बस यही कहता 'हरि इच्छा'।           वह कभी भी किसी को किसी चीज का दाम नहीं बताता बस जो कोई जितना पैसा देता हरि इच्छा कहते-कहते ले लेता। उसकी बनाई मिठाई, दही और दूध बहुत मशहूर थी। लोगों से कम दाम लेकर और ज्यादा सामान देखकर भी उसका गल्ला पैसों से भरा रहता था। उस पर हरि की खूब कृपा थी।           घर पर उसकी एक छोटी बहन और बूढ़ी माँ थी। घर में भी कोई कमी ना थी। अब हरिया की शादी बड़ी धूमधाम से शारदा नामक एक सुन्दर लड़की से हो गई। शारदा और हरिया की जिंदगी बहुत ही खुशहाल थी। हरिया बहुत ही भोला भाला और सीधा इन्सान था उसने कभी भी किसी से ऊंची आवाज में बात नहीं की थी। घर में भी वह अपनी माँ बहन और बीवी से बहुत ही प्यार से बात करता था लड़ाई झगड़े का तो उसके घर में कभी नाम भी नहीं लिया गया था।        

एक कथा

*🙏एक प्रेरक कथा🙏*               एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया.         किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया. आखिर दोपहर हो गयी. ब्राह्मण दुःखी होकर, अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है. इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला. रोटी बना कर खाने के लिए, दो मुट्ठी आटा तक न मिला ! इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी. उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली. वे बड़े पहुँचे हुए संत थे. उन्होंने कहाः “ब्राह्मण  तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?” ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन्  आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”. संतः “नहीं ब्राह्मण. मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं.       अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं. कोई शेर की योनी से आया है, तो कोई कुत्ते की योनी से आया है. कोई हिरण की योनी से आया है, तो कोई गाय या भैंस