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Showing posts from April, 2022

सच्ची इवादत।

                           *सच्ची इबादत* *एक समय की बात है*, हजरत मुउईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बाहर कुछ अन्धें भिखारी अपने अन्धेंपन की दुहाई देकर भीख माँग रहे थे !   तभी वहाँ से औरंगजेब का लश्कर गुजर रहा था ।   उसने अन्धें भिखारीयों से कहाँ क्यों रो रहे हो तो इस पर भिखारियों ने कहाँ *हुजूर हम अन्धें है ! अल्लाह ने हम गरीबों की आँखों की रोशनी छीन ली है !*  आप हम पर दया करके कुछ दे दें !   *इस पर औरंगजेब ने कहा कि तुम दरगाह पर अपनी आँखों के ठीक होने की दुआ माँगों ! इस पर भिखारियों ने कहा हुजूर हर रोज माँगते है ! मगर मंजूर नहीं होती है !  औरंगजेब ने कहा कि मैं अभी थोड़ी देर बाद वापस आ रहा हुँ और तब तक तुम दरगाह पर अपनी आँखों की रोशनी के लिए दुआ करों ।  अगर तुम्हारी आँखों की रोशनी वापिस नहीं आई तो मैं तुम सब के सिर कलम कर दुंगा, इतना कह कर औरंगजेब वहाँ से चला गया !*          अन्धें भिखारी और जोर जोर से रोने लगे और कहने लगें, हजरत एक तो पहले ही हमारी आँखों में रोशनी नहीं थी !  उपर से औरंगजेब ने हम पर यह फत्वा जारी कर दिया है !  *यह कैसा ईन्साफ है तेरा,,,,,,,,,,क्या आपको हमारी यह दशा देखकर

भँवरा और गोवरी की दोस्ती।।

 *एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी ! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ!* *भंवरा भोजन खाने पहुँचा! बाद में भंवरा सोच में पड़ गया- कि मैंने बुरे का संग किया इसलिये मुझे गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रन दिया कि तुम कल मेरे यहाँ आओ!* *अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा! भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया!*  *कीड़े ने परागरस पिया! मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुये! चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला! संध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए! कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है!*    *संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए*    *लोहा लगा जहाज में ,  पानी में उतराय!* *कोई भी नही जानता कि हम इस जीवन के

जन्मों का कर्म

 .                  🙏🌹 "जन्मों का कर्ज",🌹🙏           एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"           जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।" और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।" और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है ! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।" ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।          एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है। हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक से