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Showing posts from August, 2020

परमात्मा से सम्बन्ध

                           *------ परमात्मा से सम्बन्ध ------* एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए। उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा। कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई, तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए। लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था? बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है? पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए। फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया, कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं। ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा। फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना। दूसरे दिन राजा की सवारी निकली। सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी। पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे। जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा, तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे? आप तो हमारे गुरु हैं। आइए! इस ब

मांस का मूल्य

                              ।।।।।।मांस का मूल्य।।।।।। मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :  देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए  सबसे सस्ती वस्तु क्या है ? मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता ! तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा : राजन,  सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,  इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।  तब सम्राट ने उनसे पूछा :  आपका इस बारे में क्या मत है ?  चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा ! रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया । प्रधानमंत्री ने कहा :  शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृ

कृष्ण की गोपियाँ

                              ।।।  कृष्ण की गोपियाँ ।।। प्रभु श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ बहुत-सी लीलायें की हैं । श्री कृष्ण गोपियों की मटकी फोड़ते और माखन चुराते और गोपियाँ श्री कृष्ण का उलाहना लेकर यशोदा मैया के पास जातीं । ऐसा बहुत बार हुआ । एक बार की बात है कि यशोदा मैया प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आ गयीं और छड़ी लेकर श्री कृष्ण की ओर दौड़ी । जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वह अपना बचाव करने के लिए भागने लगे । भागते-भागते श्री कृष्ण एक कुम्भार के पास पहुँचे । कुम्भार तो अपने मिट्टी के घड़े बनाने में व्यस्त था । लेकिन जैसे ही कुम्भार ने श्री कृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ । कुम्भार जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं । तब प्रभु ने कुम्भार से कहा कि 'कुम्भार जी, आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित है । मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही है । भैया, मुझे कहीं छुपा लो ।' तब कुम्भार ने श्री कृष्ण को एक बडे से मटके के नीचे छिपा दिया । कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहाँ आ गयीं और कुम्भार से पूछने लगी - 'क्यूँ रे, कुम्भार ! तूने मेरे कन्हैया को कहीं

प्रेम के बोल

                             *!!  प्रेम के बोल  !!* ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  एक गाँव में एक मजदुर रहा करता था जिसका नाम हरिराम था | उसके परिवार में कोई नहीं था | दिन भर अकेला मेहनत में लगा रहता था | दिल का बहुत ही दयालु और कर्मो का भी बहुत अच्छा था | मजदुर था इसलिए उसे उसका भोजन उसे मजदूरी के बाद ही मिलता था | आगे पीछे कोई ना था इसलिये वो इस आजीविका से संतुष्ट था | एक बार उसे एक छोटा सा बछड़ा मिल गया | उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया उसने सोचा आज तक वो अकेला था अब वो इस बछड़े को अपने बेटे के जैसे पालेगा | हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता वो रात दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता | कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया | उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी उससे वो बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था | गाँव के सभी लोग हरिराम के बैल की ही बाते किया करते थे | किसानों के गाँव में बैल की भरमार थी पर हरिराम का बैल उन सबसे अलग था | दूर-दूर से लोग उसे देखने आते थे |हर कोई हरिराम के बैल के बारे में बाते कर र

ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति

*.                      🔆 ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति !!🔆* 🔷 काम की तलाश में इधर-उधर धक्के खाने के बाद निराश होकर जब वह घर वापस लौटने लगा तो पीछे से आवाज आयी, ऐ भाई ! यहाँ कोई मजदूर मिलेगा क्या? 🔶 उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि एक झुकी हुई कमर वाला बूढ़ा तीन गठरियाँ उठाए हुए खड़ा है। उसने कहा - हाँ !!बोलो क्या काम है ? मैं ही मजदूरी कर लूँगा। 🔷 मुझे रामगढ़ जाना है । दो गठरियाँ में उठा लूँगा, पर मेरी तीसरी गठरी भारी है, इस गठरी को तुम रामगढ़ पहुँचा दो, मैं तुम्हें दो रुपये दूँगा। बोलो काम मंजूर है। 🔶 ठीक है। चलो !! आप बुजुर्ग हैं। आपकी इतनी मदद करना तो यूँ भी मैं अपना फर्ज समझता हूँ। इतना कहते हुए गठरी उठाकर अपने सिर पर रख ली। किन्तु गठरी रखते ही उसे इसके भारीपन का अहसास हुआ। उसने बूढ़े से कहा- ये गठरी तो काफी भारी लगती है। 🔷 हाँ..... इसमें एक-एक रुपये के सिक्के हैं। बूढ़े ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा। 🔶 उसने सुना तो सोचा, होंगे मुझे क्या? मुझे तो अपनी मजदूरी से मतलब है। ये सिक्के भला कितने दिन चलेंगे? तभी उसने देखा कि बूढ़ा उस पर नजर रखे हुए है। उसने सोचा कि ये बूढ़ा जरूर ये सो

पाप -कर्म का प्रभाव

                    ( पाप -कर्म का प्रभाव ) प्राचीन काल की बात है राजा जनक ने ज्यों ही योग बल से शरीर का त्याग किया, त्यों ही एक सुन्दर सजा हुआ विमान आ गया और राजा दिव्य-देहधारी सेवको के साथ उस पर चढकर चले।  विमान यमराज की "संमनीपुरी" (नर्कों की नगरी) के निकटवर्ती भाग से जा रहा था।  ज्यों को विमान वहाँ से आगे बढ़ने लगा, त्यों ही बड़े ऊँचे स्वंर से राजा को हजारों मुखों से निकली हुई करुण ध्वनि सुनायी पड़ी : "हे पुण्यात्मा राजन् ! आप यहां से जाइये नहीं ! आपके शरीर को छूकर आने वाली वायु का स्पर्श पाकर हम यातनाओं से पीड़ित नरक के प्राणियों को बड़ा ही सुख मिल रहा है।" धार्मिक और दयालु राजा ने दुखी जीवों की करुण पुकार सुनकर दया के वश निश्चय किया : "जब मेरे यहाँ रहने से इन्हें सुख मिलता है तो  मैं यहीं रहूंगा। मेरे लिये यही सुन्दर स्वर्ग है।"  राजा वहीं ठहर गये।  तब यमराज ने उनसे कहा : "यह स्थान तो इष्ट, हत्यारे पापियों के लिये है। हिंसक, दूसरो पर कलंक लगाने वाले, लुटेरे, पतिपरायणा पती का त्याग करने वाले..  मित्रों को धोखा देनेवाले, दम्भी, द्वेष और उपहास करके

पिता का आशीर्वाद

                          बाप का आशीर्वाद और उस                          आशीर्वाद की परीक्षा:- गुजरात के खंभात के एक व्यापारी की यह  सत्य घटना है। जब मृत्यु का समय सन्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि बेटा - मेरे पास धन संपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं ,पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी।  बेटे ने सिर झुका कर पिताजी के पैर छुए।  पिता ने सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया, और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए। अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था।उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। धीरेधीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा।  अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है क्योंकि उन्होंने जीवन में दुख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी, इसलिए उनकी वाणी में बल था, और उनके आशीर्वाद फल