Skip to main content

मानवता का अप्रतिम उदाहरण



मानवता का अप्रतिम उदाहरण।

कल बाज़ार में फल खरीदने गया, तो देखा कि एक फल की रेहड़ी की छत से एक छोटा सा बोर्ड लटक रहा था, उस पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था...
"घर मे कोई नहीं है, मेरी बूढ़ी माँ बीमार है, मुझे थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और टॉयलट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें, रेट साथ में लिखे हैं।
पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें, धन्यवाद!!"
अगर आपके पास पैसे नहीं हो तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाज़त है..!!

मैंने इधर उधर देखा, पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले दर्जन भर केले लिये, बैग में डाले, प्राइस लिस्ट से कीमत देखी, पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया, वहाँ सौ-पचास और दस-दस के नोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमें रख कर उसे ढंक दिया।

बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया, रात को खाना खाने के बाद मैं उधर से  निकला, तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी, दाढ़ी आधी काली आधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामे में रेहड़ी को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था, वो मुझे देखकर मुस्कुराया और बोला "साहब! फल तो खत्म हो गए।"

उसका नाम पूछा तो बोला: "सीताराम"
फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए।
चाय आयी, वो कहने लगा, "पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछ पागल सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नहीं है, बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ..!!
माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, इसलिए मुझे ही हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है"...

एक दिन मैंने माँ के पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, "..माँ!! तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नहीं देती, कहती है, तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मै क्या करूँ?"
न ही मेरे पास कोई जमा पूंजी है।..

ये सुन कर माँ ने हाँफते-काँपते उठने की कोशिश की। मैंने तकिये की टेक लगवाई, उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया,
मन ही मन राम जी की स्तुति की फिर बोली..
"तू रेहड़ी वहीं छोड़ आया कर, हमारी किस्मत का हमें  जो कुछ भी है, इसी कमरे में बैठकर मिलेगा।"

मैंने कहा, "माँ क्या बात करती हो, वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आजकल कौन लिहाज़ करता है? और बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा?"

कहने लगीं.. "तू राम का नाम लेने के बाद बाद रेहड़ी को फलों से भरकर छोड़ कर आजा बस, ज्यादा बक-बक नहीं कर, शाम को खाली रेहड़ी ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलियो!"

ढाई साल हो गए हैं भाईसाहब सुबह रेहड़ी लगा आता हूँ ...शाम को ले जाता हूँ, लोग पैसे रख जाते हैं..
..फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नहीं होता, बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते हैं, कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज़!!

परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी,
साथ में एक पर्ची भी थी "अम्मा के लिए!"

एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था,
'माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे कॉल कर लेना,
मैं आ जाऊँगा, कोई ख़जूर रख जाता है, रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है।

न माँ हिलने देती है न मेरे राम कुछ कमी रहने देते हैं, माँ कहती है, तेरे फल मेरा राम अपने फरिश्तों से बिकवा देता है।

आखिर में, इतना ही कहूँगा की अपने मां -बाप की सेवा करो, और देखो दुनिया की कामयाबियाँ कैसे हमारे कदम चूमती हैं।...
💐💐🙏🙏

Comments

Popular posts from this blog

खुश कैसे रहें

                         कैसे   रहें     खुश _एक बार एक अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे थे अचानक ही उन्होंने बच्चों की एक छोटी सी परीक्षा लेने की सोची । अध्यापक ने सब बच्चों से कहा कि सब लोग अपने अपने नाम की एक पर्ची बनायें । सभी बच्चों ने तेजी से अपने अपने नाम की पर्चियाँ बना लीं और टीचर ने वो सारी पर्चियाँ लेकर एक बड़े से डब्बे में डाल दीं अब सब बच्चों से कहा कि वो अपने अपने नाम की पर्चियां ढूंढे । फिर क्या था , सारे बच्चे डब्बे पे झपट पड़े और अपनी अपनी पर्चियां ढूंढने लगे और तेजी से ढूंढने के चक्कर में कुछ पर्चियां फट भी गयीं पर किसी को भी इतनी सारी पर्चियों में अपने नाम की पर्ची नहीं मिल पा रही थी_ _टीचर ने कहा – क्या हुआ किसी को अपने नाम की पर्ची मिली , सारे बच्चे मुँह लटकाये खड़े थे । टीचर हल्का सा मुस्कुराये और बोले – कोई बात नहीं , एक काम करो सारे लोग कोई भी एक पर्ची उठा लो और वो जिसके नाम की हो उसे दे दो । बस फिर क्या था , सारे बच्चों ने एक एक पर्ची उठा ली और जिसके नाम की थी आपस में एक दूसरे को दे दी 2 मिनट के अंदर सारे बच्चों के पास अपने अपने नाम की सही सही पर्चियां थीं अध्यापक ने बच्

मनुष्य के भाग्य में क्या है।

                             *मनुष्य के भाग्य में क्या है ??*          एक बार महर्षि नारद वैकुंठ की यात्रा पर जा रहे थे, नारद जी को रास्ते में एक औरत मिली और बोली। मुनिवर आप प्रायः भगवान नारायण से मिलने जाते है। मेरे घर में कोई औलाद नहीं है आप  प्रभु से पूछना मेरे घर औलाद कब होगी?  नारद जी ने कहा ठीक है, पूछ लूंगा इतना कह कर नारदजी नारायण नारायण कहते हुए यात्रा पर चल पड़े । वैकुंठ पहुंच कर नारायण जी ने नारदजी से जब कुशलता पूछी तो नारदजी बोले जब मैं आ रहा था तो रास्ते में एक औरत जिसके घर कोई औलाद नहीं है। उसने मुझे आपसे पूछने को कहा कि उसके घर पर औलाद कब होगी?  नारायण बोले तुम उस औरत को जाकर बोल देना कि उसकी किस्मत में औलाद का सुख नहीं है।  नारदजी जब वापिस लौट रहे थे तो वह औरत बड़ी बेसब्री से नारद जी का इंतज़ार कर रही थी। औरत ने नारद जी से पूछा कि प्रभु नारायण ने क्या जवाब दिया ? इस पर नारदजी ने कहा प्रभु ने कहा है कि आपके घर कोई औलाद नहीं होगी। यह सुन कर औरत ढाहे मार कर रोने लगी नारद जी चले गये । कुछ समय बीत गया। गाँव में एक योगी आया और उस साधू ने उसी औरत के घर के पा

एक कथा

*🙏एक प्रेरक कथा🙏*               एक ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया.         किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया. आखिर दोपहर हो गयी. ब्राह्मण दुःखी होकर, अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है. इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला. रोटी बना कर खाने के लिए, दो मुट्ठी आटा तक न मिला ! इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी. उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली. वे बड़े पहुँचे हुए संत थे. उन्होंने कहाः “ब्राह्मण  तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?” ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन्  आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”. संतः “नहीं ब्राह्मण. मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं.       अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं. कोई शेर की योनी से आया है, तो कोई कुत्ते की योनी से आया है. कोई हिरण की योनी से आया है, तो कोई गाय या भैंस